पुस्तकालय में हिन्दी दिवस पर विचार एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन
प्रोफेसर बालकृष्ण ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आजादी से पहले पूरे देश को जोडने वाली भाषा हिन्दी थी। साहित्य प्रेमियों और षिक्षकों को हिन्दी के विकास के लिए प्रयास करने चाहिए। दीनदयाल ओझा ने मुख्य अतिथि पद से बालते हुए कहा कि हिन्दी के लिए हमें लेखन एवं कविता के माध्यम से प्रयत्न करने चाहिए। स्कूल संस्थापकों को सक्रियता दिखानी चाहिए ताकि हिन्दी का विकास हो सके। उन्होंने ‘‘पल पल गरल पिलाने वालों तुम मुझसे अमृत पाओ’’ नामक कविता का वाचन किया। मांगीलाल सेवक ने हिन्दी की गरिमा को ‘‘विदेषों में भी हिन्दी प्रेमभाव सिखलाती है, भारतीयों के हृदयों को आपस में मिलाती है बैठे हों भले ही करोडों कोसों दूर , अपने वतन की याद दिलाती है’’ नामक कविता में उल्लेख किया। श्रीवल्लभ पुरोहित ने कहा कि हिन्दी को स्थापित करने के लिए भारतेंन्द्रु जैसे साहित्यकारों को आन्दोलन करना पडा। हिन्दी के विकास हेतु निरन्तर प्रयास करना अपेक्षित है। हरीवल्लभ बोहरा ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए गैर हिन्दी भाषियों ने बहुत सहयोग दिया है। हिन्दी भाषा पर हमें गर्व हैं । यह भाषा सर्वश्रेष्ठ भाषा में एक है। ओमप्रकाश भाटिया ने ‘‘वह तो चाहता है कि सूरज की रोशनी को अपनी जेब में भर लें’’ ‘‘ कितनी व्यापक है भूख-पेट की भूख,देह की भूख’’ नामक कविताओं का वाचन किया। मनोहर महेचा ने अपने पत्र वाचन में कहा कि भारत में बोली जाने वाली लगभग पन्द्रह भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। हिन्दी राष्ट्र भाषा होने के लिए सशक्त है। हिन्दी वैज्ञानिक लिपि है। लक्ष्मण पुरोहित ने कहा कि शिक्षा का व्यवसायी करण होने के कारण लोग अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम की स्कूलों की जगह अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों में भेजते है।
नरेन्द्र वासु ने ‘‘भारत की भूमि का श्रृंगार है हिन्दी, हर भारतवासी का प्यार है हिन्दी’’कविता पढकर सुनाई। मणिकम ने ‘‘समय नहीं सोने का खाने का पढने का ’’ नामक कविता का वाचन किया। आनंद जगाणी ने कहा कि ‘‘हिन्दी की करते है हिन्दी , हिन्दी से कतराते है’’ नामक कविताओं के माध्यम से हिन्दी की दषा एवं दिषा को बताया। ओम अंकुर ने कहा कि हिन्दी भाषा का सषक्त माध्यम गीत है।उन्होंने इस अवसर पर कुछ मुक्तक एवं गीत भी प्रस्तुत किये । नन्दलाल पथिक ने ‘‘हिन्दी हमारी भाषा है, देश को इससे आषा है’’ कविता सुनाई। सुनील व्यास ने कहा कि महात्मा गांधी ने 1918 में हिन्दी को राजभाषा बनाने के लिए कहा था तथा 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा था।
अन्त में महेन्द्र कुमार दवे ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन मांगीलाल सेवक ने किया।इस अवसर पर शिवरतन पुरोहित, भवानी षंकर ,रामावतार एवं केशव जोशी उपस्थित थे। कार्यक्रम में गुलाबचंद ने सहयोग किया।
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