यह युग राजनीति का है, इसलिए राजनैनिक विचारधारा का असर हर लेखक पर होना अनिवार्य है । लेकिन विचारधारा रचना में इस तरह घुली-मिली होनी चाहिए कि रस भंग न करे । विचारधारा जीवन और व्यक्ति को और उससे जुड़ी समस्याओं को समझने में मदद दे सकती है, उसका भोंडा और किताबी प्रचार रचना को ही गिरा सकता है ।
ज्ञान गंगा
कोई तन से दुखी, कोई मन दुखी, तो कोई धन से दुखी । दुखी सब हैं । इसलिए इस समय सब धर्र्मों की विवेचना कर स्वधर्म निभाने पर मन का जोर रहता है । गीता सार हृदय में है, बुध के उपदेश ज्ञान में हैं तो, अन्य धर्मों की शिक्षा भी जीवन का आधार है । उच्छृंखलित मन को इन सब का सहारा है । शायद इसलिए ही कर्मपथ पर अग्रसर हैं । अस्तु । धर्म से शक्ति मिलेगी ।
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