विधिक साक्षरता सेमीनार में दिया जल संरक्षण का संदेश
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सेमीनार में मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट पूर्णिमा गौड़ ने बताया कि जीवन के उद्भव से लेकर सभ्यताओं की अद्यतन विकास की मूल आवश्यकता में जल की महत्वपूर्ण भूमिका स्वतः सिद्ध है, दैनिक जीवन में जागने से लेकर सोने तक जल की आवश्यकता हर कदम पर परिलक्षित होती हैं। यद्यपि पृथ्वी का दो तिहाई भाग जल से परिपूर्ण है परन्तु प्राकृतिक संपदा के रूप में यह विडम्बना है कि दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए केवल 5 प्रतिशत जल ही उपलब्ध है और उसका भी मात्र 2 प्रतिशत अंश ही सतही जल के रूप में उपलब्ध हैं। अतः जल संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जाने की आवश्यकता जताई।
न्यायिक मजिस्ट्रेट डाॅ. महेन्द्र कुमार गोयल ने बताया कि हमारे संविधान द्वारा इस अधिकार का परिरक्षण अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार के अन्तर्गत जीवन के अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया गया हैं। अतः हम सभी को जल संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता हैं। जल संबंधी अधिकारों के संबंध में कोई विवाद होने पर उसके निदान हेतु जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जन उपयोगी सेवाओं के लिए गठित स्थाई लोक अदालत में आवेदन प्रस्तुत कर उसका निदान करवाया जा सकता हैं। वर्षा जल संरक्षण के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
सेमीनार में अधिवक्ता सवाईसिंह देवड़ा ने जल संरक्षण के पारम्परिक स्रोतों जैसे बावड़ी, कुओं, तालाब, नालों के संरक्षण की आवश्यकता पर भी विचार व्यक्त किए गए। अधिवक्ता कंवराजसिंह राठौड़ ने यह सुझाव दिया कि जल संरक्षण के लिए लोगों को अपने-अपने घरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना चाहिए। अधिवक्ता गागन खां मेहर ने बताया कि लोगों को जल का महत्व समझते हुए इसका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। विमलेश कुमार पुरोहित, जहांगीर मलिक, विपिन व्यास ने भी जल संरक्षण के महत्व, उपयोग, आवश्यक एवं संरक्षण के उपायों के बारे में अपने-अपने विचार व्यक्त किए।
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